जीवन में हर अनुभूति का एक अद्वितीय रूप होता है, जिसे हम सहज ही विभाजित करने का प्रयास करते हैं—अच्छा या बुरा, उचित या अनुचित। परंतु जब हम वासना और प्रार्थना जैसे गहरे विषयों की बात करते हैं, तो इन सीमाओं को पार करना आवश्यक हो जाता है। वासना को अक्सर नकारात्मक रूप में देखा जाता है, जबकि प्रार्थना को एक उच्चतम रूप माना जाता है। हालांकि, यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि वासना और प्रार्थना एक ही सीढ़ी के दो छोर हैं। जिस प्रकार बीज से वृक्ष का जन्म होता है, उसी प्रकार वासना से प्रार्थना का उदय हो सकता है, अगर हम इसे सही दिशा में मोड़ें।
वासना: शुद्ध ऊर्जा का स्रोत
वासना कोई बुराई नहीं है; यह शुद्ध ऊर्जा का स्रोत है। वासना को केवल एक भौतिक या शारीरिक आवश्यकता तक सीमित करके देखना सही नहीं है। यह ऊर्जा का एक ऐसा रूप है, जिसे हम सही दिशा में उपयोग कर सकते हैं। यह ऊर्जा तटस्थ होती है और उसका कोई विशेष लक्ष्य नहीं होता। इस ऊर्जा को हम अपनी इच्छाओं और लक्ष्यों के आधार पर विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित कर सकते हैं।
एक साधारण उदाहरण से इसे समझा जा सकता है: एक ही वासना धन की ओर प्रवाहित होकर व्यक्ति को धनी बना सकती है, वही वासना किसी बड़े पद के पीछे लगकर उसे एक सफल नेता बना सकती है। लेकिन जब यही वासना परमात्मा की दिशा में प्रवाहित होती है, तो यह प्रार्थना बन जाती है।
परमात्मा और वासना का सामंजस्य
अगर परमात्मा वासना के विरोध में होता, तो वासना का अस्तित्व ही नहीं होता। हर जीव, हर पेड़-पौधा, हर गतिविधि में वासना का कुछ न कुछ रूप होता है। परमात्मा स्वयं हमें वासना से संपन्न करके इस संसार में भेजता है। वह जानता है कि यही ऊर्जा हमें प्रगति की दिशा में ले जाएगी। एक नवजात शिशु में भी वासना होती है, क्योंकि यही जीवन की ऊर्जा है। इसे नकारना, उसके जीवन और अस्तित्व को नकारने जैसा है।
सूफी फकीर बायजीद की कहानी इस संदर्भ में विशेष महत्वपूर्ण है। उनका पड़ोसी उन्हें परेशान करता था, लेकिन जब बायजीद ने परमात्मा से उसके हटने की प्रार्थना की, तो परमात्मा ने उत्तर दिया कि वह स्वयं उसे पचास सालों से सहन कर रहा है। इससे यह सीख मिलती है कि वासना और उसकी उत्पत्ति को अस्वीकार करना परमात्मा को अस्वीकार करने जैसा है।
रूपांतरण का महत्व
वासना का सही दिशा में प्रवाह करना आवश्यक है। जैसे एक नन्हा पौधा समय के साथ एक विशाल वृक्ष बनता है, वैसे ही वासना भी रूपांतरित होकर प्रार्थना का रूप ले सकती है। यह रूपांतरण तब होता है जब हम अपनी इच्छाओं को आध्यात्मिक दिशा में मोड़ते हैं। जब हमारी हर क्रिया में, हर विचार में परमात्मा की झलक हो, तभी वासना प्रार्थना का रूप लेती है।
इस संदर्भ में, जीसस का यह कथन महत्वपूर्ण है कि हमें अपने शत्रु से भी प्रेम करना चाहिए, क्योंकि हर व्यक्ति में परमात्मा की झलक होती है। जब हम किसी व्यक्ति, वस्तु, या विचार में परमात्मा को देखने लगते हैं, तब वासना अपनी निचली अवस्था से उठकर उच्चतम अवस्था में पहुँच जाती है।
प्रार्थना: वासना का अंतिम लक्ष्य
वासना और प्रार्थना के बीच एक गहरा संबंध है। वासना वह बीज है, जो एक दिन प्रार्थना के रूप में खिल सकता है। जब तक वासना प्रार्थना में रूपांतरित नहीं होती, तब तक व्यक्ति को संसार में बार-बार आना पड़ता है। यह जीवन एक पाठशाला की तरह है, जहां हमें वासना का सही उपयोग करना सिखाया जाता है। जैसे ही वासना प्रार्थना बनती है, व्यक्ति परमात्मा की ओर अग्रसर हो जाता है और उसका जीवन एक नई दिशा में प्रवाहित होने लगता है।
इसलिए, वासना को नकारने के बजाय, हमें इसे स्वीकार करना चाहिए और इसका उपयोग प्रार्थना के रूप में करना चाहिए। जब तक हम इसे समझ नहीं पाते, तब तक हमारा जीवन अस्थिर रहेगा।