मैं अध्यापक रहा हूँ। और विश्वविद्यालय में मैंने पढ़ना छोड़ दिया है क्योंकि मैं अपनी अंतरात्मा के विपरीत कुछ भी नहीं कर सकता। और तुम्हारी पूरी शिक्षा प्रणाली मनुष्य की सहायता करने के लिए नहीं है, उसे पंगु बनाने के लिए है। तुम्हारी शिक्षा प्रणाली न्यस्त स्वार्थी को मजबूत करने के लिए बनी है। मैं यह करने मैं असमर्थ था। मैंने इसे करने से इनकार कर दिया।
वास्तविक शिक्षा विद्रोही होगी, क्योंकि उसकी भविष्य की ओर होंगी, अतीत की ओर नहीं। प्रकृति ने तुम्हारे सिर में पीछे की और आँखें नहीं दी है। अगर प्रकृति यही चाहती कि तुम पीछे की ओर देखते रहो तो उसने तुम्हें आगे की ओर देखने के लिए व्यर्थ ही आँखें दीं।
भारत की शिक्षा प्रणाली वही है, जो अंग्रेज सरकार ने भारत के मन पर थोपी है। उनका उददेश्य केवल क्लर्क और गुलाम पैदा करने का था। और वही शिक्षा प्रणाली चलती है क्योंकि आज जो ताकत में हैं, अब वे भी क्लर्क और गुलाम तैयार करना चाहते हैं। *कोई नहीं चाहता कि सत्य बोला जाए।* भविष्य का निर्माण करने में किसी का रस नहीं है, बल्कि सभी अतीत का शोषण करना चाहते हैं।
मैं चाहता हूँ कि शिक्षा सरकार की अनुगामिनी न हो। शिक्षा इस सड़े हुए समाज की परिपुष्टि न करे बल्कि मनुष्य के प्रति, विकासमान बच्चों के प्रति समर्पित हो।
मनुष्य का शरीर है, लेकिन शिक्षा मनुष्य के शरीर के लिए कुछ नहीं करती। जब कि हम जानते हैं कि मनुष्य का शरीर शक्तिशाली, स्वस्थ और युवा बना रहने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। लेकिन शरीर की किसी को फिक्र ही नहीं है। शिक्षा में ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं है।
मनुष्य का मन है, लेकिन शिक्षा सिर्फ इसकी फिकर करती है कि सत्ताधारियों की सेवा करने के लिए मन को संस्कारित किया जाए, ताकि वह वह उनकी खिदमत कर सके। यह मनुष्यता के खिलाफ है। मन को स्वच्छ, पैना और बुद्धिमान बनाना चाहिए। लेकिन बुद्धिमान मन कोई नहीं चाहता। प्रखर चेतना कोई नहीं चाहता। ये खतरनाक बातें है। क्योंकि वे किसी भी मूढ़ता के आगे सिर नहीं झुकाएंगे। शिक्षा को इस अर्थ में विद्रोही होना चाहिए कि आदमी के पास अपने बल पर हाँ या ना कहने की ताकत होनी चाहिए।
तुम्हें यह जानकर आश्चर्य होगी कि दक्षिण अमेरिका की एक सरकार—उरुग्वे—मुझे वहाँ स्थायी निवास देने के लिए राजी थी। वे मुझे वहाँ नागरिकता देना चाहते थे। क्योंकि उस देश का राष्ट्रपति एक बुद्धिमान आदमी है। जिस दिन वह कागजात पर दस्तखत करने वाला था, उस दिन अमेरिकन राष्ट्रपति से उसे संदेश मिला कि छत्तीस घंटे के भीतर इस आदमी को ऊरुग्वे से बाहर किया जाए; क्योंकि यह आदमी अति बुद्धिमान है। उन्होंने जो कारण बताया वह बड़ा हैरानी का था: वह आदमी अति बुद्धिमान है, और वह तुम्हारी युवा पीढ़ी और उसका मन बदल देगा। वह तुम्हारा धर्म, तुम्हारा अतीत नष्ट कर सकता है। और बाद में शायद तुम पछताओगे कि तुमने उस प्रवेश करने दिया। क्योंकि तुम्हारे राजनीतिक दल केवल कचरे के आधार पर जी रहे हैं। यह तुम्हारे अपने हित में है कि यह आदमी छत्तीस घंटे के भीतर यह देश छोड़ दे। और हर एक घंटे बाद अमेरिकन राष्ट्रपति के सचिव का फोन बार—बार आता रहा: वह आदमी गया कि नहीं?
मैंने उस राष्ट्रपति से कहा, चिंता की कोई बात नहीं है, मैं खुद छत्तीस घंटों के भीतर चला जाऊँगा। और अमेरिकन राष्ट्रपति ने जो भी कहा है, वह मेरी निंदा नहीं है, वह तुम्हारी और तुम्हारे देश की निंदा है। जहाँ तक मेरा संबंध है, यह मेरी प्रशंसा है। यदि ज्यादा बुद्धिमत्ता खतरनाक है, तो हर देश, हर सरकार चाहती है कि लोग मानसिक रूप से अपंग हों। मानसिक अपंग लोग आज्ञाकारी होते हैं। – OSHO